लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिँह राठौड़ तोगावास
राजपूत
उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल है जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजपूत
या क्षत्रयि वर्ण क्रम (1 ब्राहण 2 क्षत्रिय 3 वैश्य 4 शुद्र) मे दूसरा
स्थान है राजस्थान को ब्रिटिश काल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय
में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी, किन्तु बाद में इन
वर्णों के अंतर्गत अनेक जातियाँ बन गईं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार
राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश
और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ।
राजपूतों
की उत्पत्ति- राजपूत वंश की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत
प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि
दूसरे का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के
बाद के उत्तर भारत के इतिहास को टॉड ने'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ
इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल
के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, दहिया वन्श, डांगी वंश,
चालुक्य वंश, चौहान वंश, कटहरिय़ा वंश, चन्देल वंश, सैनी, परमार वंश एवं
गहड़वाल वंश आदि आते हैं। इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज
थे,राजपूत सुध्ध रूप से 100% भारतीय है, इन्हें राम और कृष्ण के वंस से
माना गया है !, हर्षवर्धन की मृत्यु के उपरान्त जिन महान शक्तियों का उदय
हुआ था, उनमें अधिकांश राजपूत वर्ग के अन्तर्गत ही आते थे।
टोड
ने 12वीं शताब्दी के उत्तर भारत के इतिहास को 'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ
इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल
के महत्त्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश, चौहान
वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं। विदेशी उत्पत्ति
के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान 'कर्नल जेम्स टॉड' का है। वे राजपूतों को
विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों
जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की
बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन,वेश-भूषा की समानता, मांसाहार
का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का
प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि
राजपूत सीथियन के ही वंशज थे। इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे।
इस
धरा पर सभी जातियोँ का अपना-अपना इतिहास रह है। जिसमें राजपूत जाती का
इतिहास भी सामिल है। राजपूत जाती मेँ भी अन्य जातियोँ कि भांती अनेक वंश,
कुल, खांप, नख, शाखाऐं प्रफुलित हुयी हैँ जैसे - सूर्य वंश, चन्द्र वंश,
अग्नि वंश, ऋषि वंश, चौहान वंश । आज के भारत से पहले पूरे हिन्दूस्तान मेँ
अनेक हिन्दू जातियाँ ही रही है जिनका अपना अलग-अलग इतिहास है । कुछ मूर्ख व
लालची शोधकर्ता जो पहले विदेशीयोँ के दबाव मेँ लिखते थे और आजके शोधकर्ता
उनके हि लिखे साहित्य व शोध से सारांश निकाल कर पेश कर हमेँ शंका मेँ डालकर
भ्रमित कर रहेँ हैँ जो सत्य से बहुत दूर है।
बहुत
से शोधकर्ता तो विदेशी मूल के रहे हैँ जिन्हें हिन्द का भौगोलिक ज्ञान तो
था मगर जातिगत और वंशागत ज्ञान नहीँ। क्योँकि कि उन के शोध का मूल सूत्र था
समानता और विभिन्नता यानी किसी दो जाती या वंश के किसी रितिवाज या खानपान
और पहनावेँ मेँ अगर उनको समानता देखने को मिली तो वे उसे एक हि जाती या वंश
मान बैठते थे। अगर एक ही जाती मेँ किसी रितिवाज या खानपान और पहनावेँ मेँ
अगर उनको विभिन्नता देखने को मिली तो वे उसे मिश्रित या अलग जाती और वंश
करार दे देते थे। संक्षिप्त मेँ इतना ही कहूँगा इन शोधकर्ताओं ने हिन्द कि
हर जाती और वंश के बारे मेँ एक लाईन अवश्य लिखी कि इस जाती के पूर्वज
विदेशी थे तो क्या पूरा हिन्दूस्तान बंजर था? जिसमेँ कोई भी हिन्दूस्तानी
नहीँ रहता था। अन्त मेँ यही कहूँगा कि हमारे ग्रंथ व ख्यात ही बिल्कुल सत्य
है और हिन्द कि हर जाती का विकास हिन्द मेँ ही हुआ है मगर सभी का निकास
अलग-अलग महा पुरखोँ से हुआ है और सभी इस बात को स्वीकार भी करतेँ हैँ। हर
जाती और वंश मेँ अपनी पहचान कायम रखने के लिये जाती, वंश, नख, गोत्र, खाँप,
बनते गये जो आज भी जारी है ।
शाखायेँ:-
राजपूतों की"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,
चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण
भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान
चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."
अर्थ:-
दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि
वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश
क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में
जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।
सूर्य वंश की दस शाखायेँ:-
01 – कछवाह, 02 – राठौड, 03 – बडगूजर, 04 – सिकरवार, 05 – सिसोदिया, 06. – गहलोत, 07 – गौर, 08 – गहलबार, 09 - रेकबार ,10 - जुनने
चन्द्र वंश की दस शाखायें:-
01 – जादौन, 02 – भाटी, 03 – तोमर, 04 – चन्देल, 05 – छोंकर, 06 – होंड, 07 – पुण्डीर, 08 – कटैरिया, 09 – स्वांगवंश, 10 - वैस
अग्निवंश की चार शाखायें:-
01 – चौहान, 02 – सोलंकी, 03 – परिहार, 04 - पमार.
ऋषिवंश की बारह शाखायें:-
01
– सेंगर, 02 – दीक्षित, 03 – दायमा, 04 – गौतम, 05 - अनवार (राजा जनक के
वंशज), 06 – विसेन, 07 – करछुल, 08 – हय, 09 - अबकू तबकू, 10 – कठोक्स,
11 - द्लेला , 12 - बुन्देला
चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-
01
– हाडा, 02 – खींची, 03 – सोनीगारा, 04 – पाविया, 05 – पुरबिया, 06 –
संचौरा, 07 – मेलवाल, 08 – भदौरिया, 09 – निर्वाण, 10 – मलानी, 11 – धुरा,
12 – मडरेवा, 13 – सनीखेची, 14 – वारेछा, 15 – पसेरिया, 16 – बालेछा, 17 –
रूसिया, 18 – चांदा, 19 – निकूम, 20 – भावर, 21 – छछेरिया, 22 – उजवानिया,
23 – देवडा, 24 - बनकर.
राजपुताना इतिहास – राठौड़ वंश का इतिहास
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